शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

"ज्योतिष " की शोभा रत्न होते हैं !"

"काव्य शोभा करान धर्मान अलन्कारान प्रचक्षते "=मित्र बन्धु गण -संसार में सादगी किसी को पसंद नहीं आती है-[सिवा -संतों के ]-घर हो किन्तु आलौकिक हो सभी चाहते हैं ,रूप हो- परन्तु मनोहारी हो ?- संसार कि कोई भी वस्तु हो हमलोगों की कामना यही रहती है ,कि दिव्य हो ?-कुछ लोगों को ऊपर वाले की कृपा से अच्छी वस्तु प्राप्त हो भी जाती है ||आईये -संस्कृत साहित्य के रचना कार  भी "साहित्य दर्पण" नामक रंथ की रचना की और उन्होंने भी  भी यही कहा -कि  अलंकार के बिना  काव्य की भी शोभा नहीं होती है | आप चाहे कितने भी सुयोग्य है -किन्तु सुन्दरता के बिना अधूरे हैं || भला इस स्थिति में -"ज्योतिष "की भी शोभा तो रत्न ही होंगें ,प्राचीन काल में राजा महराजा लोग रत्न भव्यता के लिये धारण करते थे ,समय बदला हमलोग बदले ,"ज्योतिष "बदली -और रत्न "ज्योतिष का अभिन्न अंग बन गए ||--वास्तविकता क्या है -हम अपने कृत्य कम का फल या तो "ज्योतिष "के द्वारा जानते हैं या भोगते हैं ,प्रत्येक दंड का प्रायश्चित करना पड़ता है ,और उसके लिये -सात्विक कर्म हमें करने चाहिए ,तभी हम सही होंगें या आने वाला समय सही होगा ,परन्तु  हमलोग-उस निदान की उपेक्षा करते हैं ,जो हमें सुन्दरता तो प्रदान करता है-किन्तु सत्य का प्रतीक नहीं है-आइये हम उस पथ  पर चलने की कोशिश का  संकल्प लें -हमें सुन्दर कर्म करने चाहिए -और यदि भूल हो भी जाये तो -"तप" करने चाहिए ,आप रत्न जरुर पहनें ,किन्तु  देखा देखी में नहीं -स्थिति के अनुरूप चलें एवं अपने मित्रों को भी सुझाव दें|| हमलोग किसी भी कार्ज़ को करने से पहले विचार नहीं करते हैं ,कुछ अपने शरीर को कष्ट दें एवं तप करें ||  ||
भवदीय निवेदक -ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ -भारत } www.facebook.com/pamditjha


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